गणेश जी की कहानी | कुबेर देव का अहंकार | Hindi Kahani 

गणेश जी की कहानी


एक बार की बात है जब कुबेर देवता अपने नए सोने से बने भव्य भवन के गृह प्रवेश के लिए गणेश जी के माता पिता शंकर और पार्वती जी को निमंत्रण देने के लिए अपने सोने की रथ को लेकर कैलाश पर्वत की तरफ आगमन करने लगे | माँ पार्वती और शंकर साथ मे ही बैठे हुए थे तभी शंकर की नजर आकाश की तरफ गयी तब गणेश जी के पिता शंकर जी को यह आभास हो गया की कुबेर देवता यहा पर अपने धन का और ऐश्वर्य के प्रभाव को दिखाने आ रहे है | शंकर कुबेर देवता के अहंकार ी भरी सोच को समझ चुके थे और यह सोचते हुए मंद मंद मन ही मन मुस्कुराने लगे. 


माँ पार्वती ने शंकर जी से पूछा की: प्रभु क्या हुआ आप ऐसे अचानक आकाश की तरफ क्या देख रहे हो

तब शंकर जी ने मंद मंद मुस्कुराते हुए माँ पार्वती से कहा: प्रिये आज फिर किसी का अहंकार  टूटने वाला है

माँ पार्वती: किसका अहंकार  टूटने वाला है प्रभु... 

माँ पार्वती के बोलने से तुरंत बाद वहा पर कुबेर देवता का आगमन हो गया

कुबेर देवता रथ से उतरे और माँ पार्वती शंकर जी के समीक्ष आकर उन्हे आदर भाव से प्रणाम किया |

शंकर ने उनको आशीर्वाद दिया और उनसे यहाँ आने की वजह पूछ

कुबेर:- प्रभु मैंने आज ही अपने नये पूर्ण तह सोने से बने घर का गृह प्रवेश रखा है | मे आप दोनों को गृह प्रवेश के लिए और भोजन के लिए आमंत्रित करने आया हु, आप और माँ पार्वती मेरे साथ आये यह मेरी आपसे प्रार्थना है

शंकर जी: वत्स मुझे माफ करना आज हम दोनों का उपवास है इस कारणवश हम आपका यह आमंत्रण स्वीकार नही कर सकते

कुबेर: प्रभु ऐसा मत बोलिये मे आप दोनों के लिए यहा आया हु आपके पावन पर्श से मेरा भवन और ऐश्वर्य वान हो जायेगा 

शंकर जी को पता था यह बस उपरी बाते है कुबेर देवता के मन मे अपने धन का प्रभाव दिखाने का मकसद था

शंकर जी: ठीक है नाराज मत होइये, आप हमारे पुत्र गणेश को अपने साथ ले जाइये वह भोजन का बहुत शौकीन है. 

कुबेर: कुबेर मन ही मन (यह तो बच्चा है) ठीक है प्रभु आप गणेश को मेरे साथ भेज दीजिये

गणेश:- माँ पिताजी को प्रणाम कर और उनकी आज्ञा लेकर अपने वाहन मुशक् राज को साथ लेकर कुबेर देवता के साथ उनके सोने से बने भव्य घर की तरफ चल पड़े. 

कुबेर का वह भव्य सोने से बना भवन दूर से ही चमक रहा था भवन कुछ इस प्रकार था की उस सोने से चांदी और हीरे से बने कुबेर के भवन की सुंदरता देखता वह उसका कायल हो जाता इतना सुंदर वह भवन था | लेकिन उस सोने के बने भवन से गणेश जी को कोई लेना देना नही था उनका मन सिर्फ स्वादिष्ट भोजन चकने के लिए व्याकुल था. 

कुबेर जी ने गणेश जी को अपने भवन के अंदर स्वागत किया और भोजन कराने के लिए बिठा दिया और कुबेर के नोकर गन रसोई मे से स्वादिष्ट वेजन लेकर गणेश जी के सामने उन वेजनो को सजा दिया | उन वेजनो मे हर तरह की मिठाईया और अनेक पकवान थे | सामने इतने स्वादिष्ट पकवान देख गणेश जी अपने आप को रोक नही पाए और भोजन करना आरंभ किया और साथ मे मुशक् राज भी स्वादिष्ट पकवानों का लुफ्त उठाने लगे | कुछ समय बाद मुशक् राज का पेट भर गया था लेकिन गणेश जी की भुक अभी भी शांत नही हुई वो सामने पडे सारे पकवानों को ग्रहण कर लिया और फिर कुबेर को आज्ञा दी और पकवानों को लेकर आने के लिए कुबेर जी अपने नोकर गन से कहा और भोजन लेकर आओ | नोकर गन बनाया हुआ सारा भोजन लेकर गणेश जी के सामने प्रस्तुत किया | गणेश जी वो भी कुछ ही पलो मे चट कर गए |


ये सब देख कुबेर जी और नोकर गन आश्चर्य रूप से गणेश जी को देखने लगे | वो कर भी क्या सकते थे गणेश उनके मेहमान थे फिर क्या था कुबेर जी ने अपने नोकर गन को आज्ञा दी और भोजन बनाये नोकर गन तेजी से भोजन कक्ष मे गए और फिर से भोजन तयार कर के गणेश जी के सामने प्रस्तुत किया लेकिन वह भोजन भी गणेश जी ने कुछ ही पलो मे खत्म कर दिया | फिर से भोजन बनाया गया गणेश जी ने वो भी खा कर खत्म कर दिया फिर भी गणेश जी की भुक् शान्त होने का नाम नही ले रही थी | एक वक्त बाद कुबेर जी के घर का सारा राशन खत्म हो गया यह देख कुबेर जी ने गणेश से कहा की प्रभु सारा भोजन खत्म हो चुका है अब हम क्या करे

गणेश जी ने कहा की मे आपका मेहमान हु मेरी भुक शांत करना आपका कर्तव्य है अगर अपने मेरी भुक् शान्त नही की तो मे आपके इस भवन को खा जाऊंगा और इतना कह कर गणेश जी कुबेर जी के भव्य भवन मे रखे सारी चीजे एक एक कर के खाने लग गए यह देख वाह खड़े कुबेर और नोकर गन घबरा गए और यह देख कुबेर जी गणेश जी के पिता शंकर जी और माँ पार्वती के पास गए और उनसे कहा की आपके पुत्र की भुक् शान्त नही हो रही प्रभु मेरी मदत कीजिये |

इतना सुन शंकर जी मंद मंद मुस्कुराने लगे और बोले की आप तो इतने धनी है आपके पास दुनिया भर की दौलत है फिर भी आप एक बच्चे की भुक शान्त नही कर पाए 

तब जा कर कुबेर को अपनी गलती समझ मे आगयी और वो अपना सिर झुका कर हात जोड़ते हुए शंकर जी से माफी मागने लगे |

शंकर जी बोले की किसी भी चीज का अहंकार  किसी चीज का दिखावा करना और अपने आप को बड़ा समझना यह चीजे हमे महान नही बनाती, तुम्हारे पास आज जो कुछ भी है वह सत्य है लेकिन यह सब तुम्हारे साथ आखिर तक नही रहेगा यह भी सत्य है | जो कल जाने वाला है एक न एक दिन समाप्त होने वाला है उसका अहंकार  क्यों करना. 

यह बात सुन कुबेर जी समझ गए थे की उनोने कितनी बड़ी गलती कर दी उनोने शंकर जी से क्षमा मांगी. 

उसके बाद माँ पार्वती एक छोटी कटोरी मे चावल भात लेकर कुबेर जी को दिया और कहा की आप यह गणेश को खिला दीजिये 

कुबेर आश्चर्य से सोचने लगे गणेश जी का इतने से चावल से कैसे पेट भरेगा फिर भी वह शंकर जी और माँ पार्वती से आज्ञा लेकर वह छोटे से चावल (भात) की कटोरी गणेश जी को दिया गणेश जी ने वह चावल जैसे ही ग्रहण किये उनकी भुक आश्चर्य रूप से शांत हो गयी और तब जा कर कुबेर जी के जान मे जान आयी. 


सीख:- किसी भी चीज का अहंकार  नही करना चाहिए हमारे पास आज जो कुछ भी है जरूरी नही की वह आखिर तक हमारे साथ रहे इस धरती पर बने हर एक चीज का अंत होना निश्चित है. 


दोस्तों मुझे उम्मीद है की गणेश जी की इस कहानी से आपको कुछ सीखने को मिला होगा | ऐसे ही और हिंदी कहानियाँ पढ़ने के लिए आप हमारे inspired Hindi website से जुड़े रहे | इस पोस्ट को आखिर तक पढ़ने के लिए आप सभी का दिल से धन्यवाद. 


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